Recession Meaning In Hindi : दोस्तों रिसेशन का मतलब मंदी होता है, और मंदी ये दर्शाता है, की आने वाले कुछ समय में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ में गिरावट देखने को मिलती है, जैसे unemployment रेट बढ़ना, देश का जीडीपी नेगेटिव में दिखना, साथ ही देश के कई सारे इंडस्ट्री को एक साथ नुकसान पहुचना आदि |
तो दोस्तों ऐसे में ये सवाल उठता है, की आखिर रिसेशन कब आता है, और रिसेशन आने की क्या कारन होते है, अगर आपके मन में भी ऐसे ही सवाल उठ रहे है, तो आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े |
Recession meaning in Hindi (Recession का क्या अर्थ है)
Recession का हिंदी अर्थ होता है ‘मंदी’ यानी कि भाव का उतरना। दरअसल कहीं भी कोई भी अर्थव्यवस्था के हमेशा दो पहलू होते हैं यानी कि जब भी महंगाई का दौर आता है तो उसके बाद एक बार Recession यानी कि मंदी का दौर आना ही है और ऐसी स्थिति कभी-कभी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी भी होती है।
जी हां यदि देखा जाए तो जब कहीं की अर्थव्यवस्था में लगातार तेजी बनी रहती है, तो वहां पर मुद्रास्फीति यानी inflation की परिस्थिति आ जाती है और जब कहीं यानी किसी देश कि अर्थव्यवस्था में इन्फ्लेशन लगातार बढ़ने लगती है, तो उस देश की अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाता है और इसका सबसे अच्छा उदाहरण जिंबावे है।
जब कभी किसी देश की अर्थव्यवस्था का जीडीपी (GDP) गिरता है, तो वहां पर बेरोजगारी का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है और खुदरा बिक्री में लगातार गिरावट आती है, जिसकी वजह से लोगों की आय में भी गिरावट आती है और ऐसी ही स्थिति को अर्थशास्त्री ने आर्थिक मंदी यानी इकोनामिक रिसेशन (Economic Recession) का नाम दिया है।
Recession की परिभाषा (Recession किसे कहते है)
जब किसी भी देश की GDP growth तकरीबन तीन महीने तक लगातार down हो और वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में भी निरंतर गिरावट हो रही हो, तो ऐसी स्थिति को मंदी या Recession कहते हैं। आसान शब्दों में कहें तो जब देश की GDP growth दो तिमाही तक लगातार negative रहे तो, ऐसी स्थिति में कहा जाता है कि देश में आर्थिक मंदी आ चुकी है।
इस परिभाषा को या इस विचार को सर्वप्रथम कमिश्नर ऑफ ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिक्स (commissioner of bureau of labor statics), Julius Shiskin ने 1974 में दिया था। हालांकि इस परिभाषा या विचार को हर देश नहीं मानते हैं। जी हां कई देश ऐसे भी हैं, जिनके अनुसार यदि GDP growth कुछ महीनों तक नकारात्मक रहता है और बेरोजगारी का स्तर लगातार बढ़ता रहता है, तो ऐसी स्थिति को वहां आर्थिक मंदी कहा जाता है।
ध्यान देने वाली बात यहां यह है, कि कितने महीने तक आर्थिक स्थिति down रहेगी या बेरोजगारी बढ़ती रहेगी यह उन देशों के central bank के अर्थशास्त्रियों द्वारा decide किया जाता है। लेकिन अधिकतर देशों में ऐसा माना जाता है, कि जब GDP growth लगातार 2 तिमाही तक negative रहे, तो उन्हें Recession या मंदी कहा जा सकता है।
Recession Kab Aata Hai?
रिसेशन आने के कई कारन हो सकते है, जैसे स्टॉक मार्किट क्रेश करना, लगातार इकॉनमी को स्ट्रगल करना, इंटरेस्ट रेट का बढ़ना, unemployment दर बढ़ना, अचानक से पूरी दुनिया में कोई महामारी आना जैसे कोरोना वायरस, आदि |
पर सवाल उठता है की आखिर साल 2022 में ऐसी क्या घटना हुई जिससे रिसेशन का आगमन हुआ?
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Recession आने का सबसे बड़ा उदाहरण 2019 के कोरोनावायरस है। यह तो हर किसी को पता है, कि कोरोना काल के समय न केवल देश की बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था डामाडोल हो चुकी थी। कोरोना काल की उस स्थिति में दुनिया भर के तकरीबन प्रत्येक देश अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत सारे रुपए print करवाए थे ताकि अर्थव्यवस्था बरकरार रहे, मंदी ना आए और यही वजह है कि कोरोना काल के उन 2 सालों तक देश की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही थी।
लेकिन दूसरी ओर यदि देखा जाए घरेलू उत्पादों की, तो पैसों के सामने उनकी demand ज्यादा नहीं बढ़ सकी जिसके वजह से वस्तु और उत्पादों की कीमत लगातार बढ़ने लगे अर्थात धीरे-धीरे देश में इन्फ्लेशन (inflation) बढ़ना शुरू हो गया और इन 2 सालों तक इन्फ्लेशन (inflation) काफी हद तक बढ़ चुका था, जिसे काबू करने के लिए तकरीबन सभी देशों के central bank को ब्याज दर में वृद्धि करनी पड़ी, जिसके वजह से सारे रुपए market से direct central bank की तरफ खींचने शुरू हो गया।
हालांकि वर्तमान में कोरोनावायरस समाप्त हो गया है, लेकिन अभी भी कई देशों की हालत काफी गंभीर है और कई देश गिरती अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए और देश की GDP growth बढ़ाने के लिए काफी जद्दोजहद कर रहे हैं। यूँ कहा जा सकता है, कि वर्तमान में कुछ ऐसा माहौल बन रहा है, जिससे जल्दी Recession आने की संभावना है। हाल ही में श्रीलंका इसका एक अच्छा उदाहरण है, जहां की अर्थव्यवस्था काफी जर्जर हो चुकी थी।
भारत में Recession कितनी बार आ चुकी है
यदि इतिहास के पन्नों को खंगाला जाए तो भारत में कुल 4 बार आर्थिक मंदी (Economy Recession) आ चुकी है। यह ऐसी स्थिति थी जिनसे निकल पाना देश के लिए काफी मुश्किल था, लेकिन भारत ने यह कर दिखाया और आज वर्तमान में भारत की आर्थिक स्थिति पहले की तुलना में काफी बेहतर है। आइए नजर डालते हैं, कि आखिर वह कौन सा समय था और कैसी स्थिति उत्पन्न हुई थी जब भारत को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा था।
पहली बार
सबसे पहले भारत में आयात बिल बढ़ जाने के कारण जीडीपी 1.2 प्रतिशत सिकुड़ गई, जिसके वजह से 1957 से 1958 में भारत को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा था।
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दूसरी बार
दूसरी बार भारत में मंदी आने का सबसे बड़ा कारण था पाकिस्तान तथा चीन के साथ युद्ध और फिर सूखा पड़ जाना, जिसके वजह से खदान उत्पादों में तकरीबन 20% की गिरावट आ गई थी और उस समय जीडीपी ग्रोथ 3.7 प्रतिशत कम हो गया था। यह 1965 से 1966 का दौर था जब भारत को आर्थिक मंदी का सामना दूसरी बार करना पड़ा।
तीसरी बार
ओपेक कंट्रीज के माध्यम से क्रूड के प्राइस में 400% तक की बढ़ोतरी होने की वजह से 1972 से 73 के बीच जीडीपी ग्रोथ 0.3 प्रतिशत गिर गया। इतना ही नहीं उस दौर में क्रूड ऑयल की कीमत $3 से बढ़कर तकरीबन $12 तक पहुंच चुकी थी, जिसकी वजह से भारत को तीसरी बार आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। यह वह दौर था जब भारत क्रूड ऑयल का आयात करता था।
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चौथी बार
चौथी बार देश में मंदी आने का सबसे बड़ा कारण था देश का आयात। जी हां 1979 से 1980 के समय भारत का निर्यात आयात की तुलना में काफी ज्यादा कम हो गया था और फिर इसी दौरान देश के निर्यात में भी तकरीबन 8% की कमी आ गई, जिसकी वजह से भुगतान संतुलन बिगड़ गई और जीडीपी ग्रोथ 5.2 प्रतिशत कम हो गई।
अंतिम विचार
आज के इस post में हमने आपकों Recession के बारे तमाम जानकारी provide की है। जैसे – Recession meaning in Hindi (Recession का क्या अर्थ है), Recession क्यूँ होता है, Recession किसे कहते है आदि। उम्मीद है, हमारे द्वारा प्रदान की गई यह जानकारी आपको अच्छी तरह से समझ आ गयी होगी। लेकिन यदि इस विषय से संबंधित आपको और अधिक जानकारी चाहिए तो नीचे comment के माध्यम से आप हमसे संपर्क कर सकते है।