Konark Sun Temple Essay In Hindi (कोणार्क सूर्य मंदिर पर निबंध) 

Konark Temple Essay In Hind :- भारत एक ऐसा देश है जहां कई शानदार मंदिर बने हुए हैं जहां सैकड़ों हजारों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं कुछ मंदिर तो भारत में से हैं जिन का महत्व बहुत ज्यादा है आज हम इस आर्टिकल में ऐसे ही एक भव्य और रहस्यमई मंदिर के बारे में बात करेंगे जो भारत के उड़ीसा में स्थित है जी हां हम बात कर रहे हैं पूरी के समीप कोणार्क में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर की जिसकी भव्य वास्तुकला की चर्चाएं विश्व भर में मशहूर है, तो चलिए इस लेख को शुरू करते हैं, और जानते हैं, konark temple essay in Hindi (कोणार्क सूर्य मंदिर पर निबंध)

Konark Sun Temple Essay In Hindi (कोणार्क सूर्य मंदिर पर निबंध) 

भारत में स्थित कोणार्क मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला का सबसे शानदार और अनोखा नमूना है। जिसके बारे में रविंद्र नाथ टैगोर जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, उन्होंने कहा था कि कोणार्क मंदिर विश्व का सबसे अद्भुत स्थान है। जहां पत्थरों की भाषा के सामने इंसानों की भाषा राई समान लगती है अर्थात्‌ बहुत छोटी लगने लगती है।

कोणार्क मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व का धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इतना ही नहीं कलिंग शैली में निर्मित कोणार्क मंदिर की बनावट अपने आप में सबसे अनोखा है, जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों की तादाद में पर्यटक यहां आते हैं। इस मंदिर को पत्थर से बनाया गया है, जहां पत्थरों पर बहुत ही बारीक नक्काशी की गई है। इतना ही नहीं यह मंदिर दिखने में रथ के समान लगता। है मानो 12 जोड़ी पहियों के साथ इसे 7 घोड़े खींच रहे हैं जहां सूर्यदेव विराजमान है। हालांकि वर्तमान में केवल एक ही घोड़ा बचा है, लेकिन आज भी यह दिखने में बेहद खूबसूरत लगता है। 

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कोणार्क सुर्य मंदिर का इतिहास

कोणार्क सूर्य मंदिर, भारत में स्थित उड़ीसा के पूर्व में पवित्र शहर पूरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर कोणार्क नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर का आकार एक विशाल रथ के समान है, जो कि सूर्य देव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी स्थापत्य की भव्यता के लिए ही नहीं बल्कि मूर्तिकला कार्य और पत्थरों पर की गई नक्काशी के लिए भी विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह मंदिर कलिंग वास्तुकला का सबसे उत्तम बिंदु है, जो जीवन कि लय, खुशी और अनुग्रह को दर्शाता है। 

कोणार्क मंदिर का नाम कुल दो शब्दों से मिलकर बना है। कोणा और अर्क। जहा कोणा का अर्थ है कोना यानी किनारा और अर्क का मतलब है सूर्य, यानी कि सूर्य का किनारा। इसी वजह से इस मंदिर का नाम कोणार्क मंदिर रखा गया। 13 वी शताब्दी में, मोहम्मद गौरी के शासनकाल के दौरान जब मुस्लिम शासकों द्वारा भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य एवं बंगाल प्रांत समेत कई राज्यों में कब्जा कर लिया गया, तब कोई भी ताकतवर शासक इन मुस्लिमों से लड़ने के लिए तैयार नहीं था। 

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सभी उड़ीसा के निवासी यह मान चुके थे, कि अब उड़ीसा क्षेत्र में हिंदुओं का साम्राज्य समाप्त हो जाएगा। ऐसी भयानक स्थिति को देखकर गंगा राजवंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने साहस जुटाकर अपनी चतुर नीति से उन मुस्लिमों के ऊपर आक्रमण करने का सोचा और उनपर आक्रमण कर दिया।उस समय इल्तुतमिश सुल्तान के मौत के बाद दिल्ली के सिंहासन हेतू नरेशउद्दीन मोहम्मद को उत्तराधिकारी बनाया गया। साथ ही साथ तुगान खान को बंगाल राज्य का राज्यपाल घोषित किया गया था। जिसके बाद 1243 ईस्वी में नरसिंह देव और तुगान खान के बीच युद्ध हुआ। 

इस युद्ध में नरसिंह देव की जीत हुई उन्होंने सभी मुस्लिमों को अपने क्षेत्र से मार भगाया, और युद्ध में विजय प्राप्त की। जैसा कि नरसीह देव सूर्य देव के बहुत बड़े भक्त थे, तो उन्होंने अपनी इस जीत की खुशी में कोणार्क के इस भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण समुद्री तट पर किया था। अर्थात इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में नरसिंह देव प्रथम द्वारा किया गया था। 

इस मंदिर का निर्माण काली ग्रेनाइट और लाल रंग की बलवा पत्थरों से हुआ है। इतना ही नहीं इस मंदिर में तीन मंडप बने हुए हैं, जिनमें दो मंडप फिलहाल ढह चुके हैं और तीसरे मंडप में जहां मूर्ति रखी गई थी उसे अंग्रेजों के जमाने में रेत और पत्थर भरवा कर सभी दरवाजों को स्थाई रूप से बंद कर दिया गया था ताकि वह मंदिर और ज्यादा क्षतिग्रस्त ना हो। इस मंदिर में सूर्य देव की तीन मूर्तियां रखी गई है। बाल्यावस्था – उदित सूर्य, युवावस्था – मध्याह्न सूर्य, प्रौढ़ावस्था – अपराह्न सूर्य। 

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कोणार्क सुर्य मंदिर का पौराणिक महत्व

इस भव्य कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसमें हिंदू धर्म के अनुसार लोगो का यह मानना है कि, भगवान श्री कृष्ण जी के पुत्र सांबा ने एक बार नारद मुनि जी से दुर्व्यवहार किया था। जिससे क्रोध में आकर नारद मुनि जी ने सांबा को कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया था।

तभी इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि कटक ने श्रीकृष्ण के पुत्र सांबा को कहा कि, तुम सूर्य देव की आराधना करो, जिससे तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिलेगी। जिससे कि श्री कृष्ण जी के पुत्र सांबा ने चंद्रभागा नदी के तट पर लगातार 12 सालों तक सूर्य देव का तप किया। एक दिन की बात है, जब श्रीकृष्ण के पुत्र सांबा चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें पानी में सूर्य देव की एक तैरती हुई मूर्ति दिखाई दी। जिसे सांबा ने उस स्थान पर स्थापित किया, जिस स्थान पर अभी सूर्यदेव का विशाल कोणार्क सुर्य मंदिर स्थित है।

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इस तरह श्री कृष्ण जी के पुत्र सांबा को सूर्य देव की आराधना का फल मिला। उन्हें नारद मुनि द्वारा दिए गए श्राप से मुक्ति मिल गई। इसी कारण इस मंदिर का महत्व बहुत ही ज्यादा है, देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन हेतु आते हैं।

कोणार्क सूर्य मंदिर की विशेषताएं

इस मंदिर को भारत के सात अजूबों में भी स्थान मिला है। इसकी बनावट और इसका आकार किसी के भी मन को विचलित कर सकता है। इस मंदिर की एक नहीं बल्कि कई विशेषताएं हैं जैसे कि-

  • कोणार्क के इस भव्य सूर्य मंदिर को यूनेस्को द्वारा 1884 में विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
  • सूर्य देव का यह विशाल मंदिर समय की गति को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि, इसे स्वयं सूर्य देव नियंत्रित करते हैं।
  • इस मंदिर के पूर्व दिशा में जाने पर आपको सात घोड़े नेतृत्व करते दिखेंगे, एवं रथ के 24 पहिया दिखेंगे। सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों को प्रदर्शित करते हैं एवं 24 पहिए दिन के 24 घंटे को प्रदर्शित करते हैं।
  • लोगों का तो यह भी मानना है कि, 24 पहियो में से दो-दो की 12 की जोड़ी साल के 12 महीने को प्रदर्शित करते हैं।
  • इस मंदिर की संरचना के आधार की पट्टिका में कई हाथियों की प्रतिमाएं अंकित है, जिन्हें देखकर ऐसा महसूस होता है कि, इन हाथियों ने ही इस पूरी संरचना का भार अपने पीठ के ऊपर उठा रखा है।
  • क्योंकि यह मंदिर एक विशाल रथ कि आकार में बना हुआ है, इसलिए इस मंदिर को भगवान के रथ के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी सुंदरता का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

निष्कर्ष

आज का यह लेख konark temple essay in hindi (कोणार्क सूर्य मंदिर पर निबंध) यहीं पर समाप्त होता है। आज के इस लेख में हमने जाना कि कोणार्क मंदिर की क्या विशेषताएं हैं नाक मंदिर की खासियत क्या है और कोणार्क मंदिर का इतिहास क्या है उम्मीद है आपको कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी तमाम जानकारी का ज्ञान हो गया होगा। इसी के साथ यदि आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो कृपया इसे शेयर करें और यदि इससे संबंधित और जानकारी चाहिए तो नीचे कमेंट के माध्यम से हमसे जरूर संपर्क करें।

Konark Sun Temple Essay In Hindi (कोणार्क सूर्य मंदिर पर निबंध) | FAQ 

Q1 . कोणार्क मंदिर में बनी सात घोड़े का क्या प्रतीक है?

Ans – कोणार्क मंदिर में बने सात घोड़ों को सप्ताह के 7 दिनों का प्रतीक कहा जाता है।

Q2 . प्राचीन समय में समुद्र की यात्रा करने वाले लोग इसे क्या कहते थे?

Ans – प्राचीन समय में समुद्र की यात्रा करने वाले लोग इसे ब्लैक पगोड़ा कहते थे।

Q3 . कोणार्क के सूर्य मंदिर को ब्लैक पगोड़ा क्यों कहा जाता था?

Ans – दरअसल समुद्र की यात्रा करने वाले लोगों का यह मानना था कि यह मंदिर किनारे पर आने के लिए जहाजों को अपनी ओर आकर्षित करते थे और फिर उन्हें नष्ट कर देते थे।

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