शहीद भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography In Hindi

शहीद भगत सिंह की जीवनी :- नमस्कार दोस्तों RishabhHelpMe Blog में आपका फिर से स्वागत है, दोस्तों आप इस बात से तो सभी परिचित होंगे कि हमारा भारत देश बहुत लंबे समय तक अंग्रेजों का ग़ुलाम रहा है और आज हमारा देश आज़ाद है, या फिर यु कहे तो अभी के समय हम सभी भारतीय आजाद है, लेकिन यह आज़ादी लेने के लिए हमारे देश के बहुत वीर जवानों ने अपनी जान न्यौछावर किये है | और उन्ही में से एक वीर भगत सिंह भी थे, इसीलिए दोस्तों आज के लेख में हम जानेंगे की वीर भगत सिंह की जीवनी साथ उनके कुछ महत्पूर्ण कोट्स के बारे में!

शहीद भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography In Hindi
शहीद भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography In Hindi

शहीद भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography In Hindi

शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे।  महज 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह नायक हमेशा के लिए अमर हो गया। 

उसके लिए क्रांति का मतलब था, अन्याय से बनी स्थिति को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद के प्रति अत्यधिक आकर्षित हुए।  उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और भारतीय समाज के पुनर्निर्माण के लिए राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना आवश्यक था।

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन | Bhagat Singh’s early life

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गाँव के एक सिख परिवार में हुआ था। उनकी याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर कर दिया गया है।

वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे।

भारत से ब्रिटिश शासन को बाहर करने के लिए ग़दर पार्टी की स्थापना अमेरिका में की गई थी। परिवार के माहौल का भगत सिंह के दिमाग पर बड़ा प्रभाव पड़ा और बचपन से ही देश भक्ति की भावना उनके दिल में भरी गयी। 

भगत सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा 5 वीं तक की थी और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उन्हें दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में दाख़िल दिलाया।  बहुत कम उम्र में, भगत सिंह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और बहुत बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को चुनौती दी, और इसके बाद 1919 में जलियांवाला बाघ हत्याकांड और 1921 में ननकान साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों ने उनके जीवन में एक मजबूत देशभक्ति के दृष्टिकोण को आकार दिया।

भगत सिंह केवल 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया। इस के अगले दिन, भगत सिंह ने जलियांवाला बाग में जाकर उस जगह से मिट्टी एकत्र की और इसे अपने पूरे जीवन के लिए निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड से भगत सिंह ने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के अपने संकल्प को और मजबूत किया।

भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत | Beginning Of Revolutionary Life Of Bhagat Singh

महात्मा गांधी के साथ आंदोलन

1921 में, जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया, तो भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आंदोलन में सक्रिय हो गए। 

1922 में, जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया था, तो भगत सिंह बहुत निराश थे। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति स्वतंत्रता प्राप्त करने का एकमात्र उपयोगी तरीका है।

भगत सिंह की शादी की बात

इस बीच, उनके परिवार के सदस्य उनकी शादी पर विचार कर रहे थे।  भगत सिंह ने शादी से इनकार कर दिया और कहा “अगर मैं आज़ादी से पहले शादी करता हूं, तो मेरी दुल्हन की मौत होगी।

” जिसके बाद उसके घर वालों ने शादी की बात करना बंद कर दिया। भगत सिंह कॉलेज में कई नाटकों में भाग लेते थे, वे बहुत अच्छे अभिनेता थे। उनके नाटक, स्क्रिप्ट देश भक्ति से भरपूर थे, जिसमें उन्होंने कॉलेज के युवाओं को स्वतंत्रता के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया।

नौजवानों को साथ लाने के लिए मैगज़ीन में काम

भगत सिंह पहली बार युवा भारत सभा में शामिल हुए।  भगत सिंह लाहौर में अपने घर लौट आए जब उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अब उनकी शादी के बारे में नहीं सोचेंगे। 

वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों के साथ बातचीत की, और उनकी पत्रिका “कीर्ति” के लिए काम करना शुरू किया। वे देश के युवाओं को अपना संदेश इस मैगज़ीन द्वारा पहुंचते थे।

लाल लाजपत राय की मृत्यु

1928 में वह चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा गठित एक मौलिक पार्टी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।  30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध करते हुए पूरी पार्टी एक साथ भारत खड़ी थी, जिसमें लाला लाजपत राय भी थे।

“साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लाहौर रेलवे स्टेशन पर खड़े रहे। जिसके बाद वहां लाठी चार्ज किया गया, जिसमें लाला जी बुरी तरह घायल हो गए और फिर उनकी मौत हो गई।

ब्रिटिश अधिकारी सकॉट को मारने की योजना

लाल लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के भगत सिंह और उसकी पूरी पार्टी ने मिल कर एक गुप्त योजना बनाई जिसका मकसद सुपरिटेंडेंट सकॉट को मारना था।

इस योजना के तहत भगत सिंह , जयगोपाल, राजगुरु, और चन्द्रशेखर के द्वारा इस घटना को अंजाम देकर ब्रिटिश अधिकारी स्काट को मार गिराया जब वो मार कर भाग रहे थे तो एक सिपाही बीच में आ गया वह चेतावनी देने पर भी नही हटा तो उसको भी चन्द्रशेखर द्वारा मार दिया गया।

एसेम्बली में बम बिस्फोट

भारत रक्षा अधिनियम के निर्माण के जवाब में, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने विधान सभा में अध्यादेश पारित करने के समय बम विस्फोट करने की योजना बनाई। 

8 अप्रैल 1929 को, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा के बीच में एक बम विस्फोट किया और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। उसका इरादा किसी को मारना नहीं था, वह बस अध्यादेश को पारित नहीं होने देना चाहता था।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त भागे नहीं और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। मुकदमे में, अदालत ने उनकी इस गतिविधि को बहुत ही दुर्भावनापूर्ण और अवैध करार दिया और भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

जेल में भूख हड़ताल

जेल के अंदर कैदियों पर हो रहे अत्याचार और ज़ुल्म के खिलाफ भगत सिंह ने आवाज़ बुलंद की और अपने साथियों के साथ मिल कर जेल के अंदर 7 दिनों की भूख हड़ताल की इस भूख हड़ताल में उनके एक सहयोगी ने अपनी जान भी गवा दी थी।

फांसी की सज़ा और मृत्यु

7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुना दी गयी। इस के बाद कई लोगों द्वारा फांसी को रोकने के अपील लगाई गई लेकिन सब की अपील को खारिज़ कर दिया गया।

23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे के करीब भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी लगा दी गई और इसके बारे में किसी को ना बताया गया। जैसे ही लोगों को इस कि खबर मिली तो आज़ादी का आंदोलन ने और ज्यादा रफ्तार पकड़ ली। दोस्तों यह थी हमारे देश के हीरो शहीद भगत सिंह की कहानी जिन्होंने अपने देश के लिए हस्ते हस्ते मौत को गले लगा लिया था।

Shaheed Bhagat Singh Quotes Hindi

देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते है,
कहने दो उन्हें,
सीने पर जो जख्म है,
सब फूलो के गुछे है
हमे पागल ही रहने दो,
हम पागल ही अच्छे है |

मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम, मैं इसक भी लिखना चाहू तो इंकलाब लिख जाता है |

दिलेर मर्द चढ़े थे फांसी पर, चरखा तो लुगाईयों ने भी चलाया था |

हर चिराग की अपनी एक कहानी है, कभी ख़ुशी तो कभी दर्द की निशानी है |

तीन परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा,
ये हस रहे थे मगर हिन्दुस्तान रो पड़ा था |

राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है
मैं एक एसा पागल हु,
जो जेल में भी आजाद है |

अंतिम विचार

हम उम्मीद करते है, की शहीद भगत सिंह की जीवनी और इनके विचार आपको बेहद पसंद आये होंगे, साथ ही इन सभी की जानकारी आपको मिल गयी होगी, और अगर इस टॉपिक से रिलेटेड कोई भी सवाल आपके मन में है, तो आप कमेंट के माध्यम से हमसे पूछ सकते है | और अगर यह पोस्ट आपको पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर कीजिये ताकि उन्हें भी इस तरह की जानकारी से अवगत हो सके |

शहीद भगत सिंह की जीवनी | FAQ

भगत सिंह का नारा क्या है ?

भगत सिंह ने अपनी माँ को एक बचन दिया था की मैं देश को आजाद कराने के लिए फासी के तख्ते पर भी चढ़ जाऊंगा और “इंक्लाव जिंदाबाद” नारा भी लगाऊंगा |

भगत सिंह को फासी क्यों दी गयी ?

23 March 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी। क्योकि वी तीनो लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी।

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